कुंडली के तृतीय भाव में नवमेश का प्रभाव

कुंडली के तृतीय भाव में नवमेश का प्रभाव

1)कुंडली के तृतीय भाव में नवमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम तृतीय भाव और नवम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हैं। नवम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से सप्तम भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का सप्तम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं।

2) नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित होकर समसप्तक संबंध स्थापित करता है, जो कि एक उत्तम संबंध नहीं माना जाता है। लेकिन नवम भाव का स्वामी एक उपचय भाव में स्थित है, अतः नवम भाव के नैसर्गिक कार्यकर्ताओं में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो सकती है। अतः नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में मिश्रित फल देता है।

3) नवम भाव भाग्य का कारक भाव होता है। तृतीय भाव कम्युनिकेशन का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक संवाद के मामले में भाग्यशाली होता है। जातक अपनी लेखनी, वाणी और नेचुरल टैलेंट के दम पर धन अर्जित करने में सक्षम होता है। जातक को अपनी लेखनी या संवाद की क्षमता के कारण उत्तम प्रसिद्धि प्राप्त होती है।

4) तृतीय भाव भाइयों का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक के भाई भाग्यशाली होते हैं। जातक के भाई जातक के लिए उत्तम अवसर लेकर आते हैं। जातक को अपने भाइयों का उत्तम सुख प्राप्त होता है।

5) नवम भाव पिता का कारक होता है। नवम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से सप्तम भाव में स्थित है। यह जातक के पिता के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। जातक के पिता को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या हो सकती है। यदि नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में पीड़ित हो, तब जातक की पिता की मृत्यु या दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं। जातक का अपने पिता के साथ इगो से संबंधित समस्या हो सकती है और जातक की अपने पिता से उत्तम संबंध नहीं होते हैं।

6)नवम भाव धर्म का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक जीवन के आरंभिक अवस्था में धर्म की ओर बहुत ज्यादा रुझान नहीं रखता है। लेकिन जैसे-जैसे जातक की उम्र बढ़ती है, जातक का धर्म की ओर झुकाव बढ़ता जाता है। जातक धर्म की गुढ़ जानकारियों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो सकता है।

7) तृतीय भाव और नवम भाव दोनों यात्रा के कारक भाव हैं। अतः यदि द्वितीय भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब जातक की अनेक यात्राएं हो सकती है। जातक की निरंतर छोटी छोटी यात्राएं होती रहती है।

8) यदि नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव के स्वामी के साथ तृतीय भाव में स्थित हो तब, जातक के भाई भाग्यशाली और धनी होते हैं। जातक धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है और अनेक धार्मिक यात्राओं पर जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Thanks You

Your Form is Submitted,
We will contact You soon !

Something Wasn’t Clear?
Feel free to contact me, and I will be more than happy to answer all of your questions.
Profile Picture