कुंडली के अष्टम भाव में अष्टमेश का प्रभाव

कुंडली के अष्टम भाव में अष्टमेश का प्रभाव

1) कुंडली के अष्टम भाव में अष्टमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम अष्टम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में ही स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का प्रथम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में विपरीत राजयोग का निर्माण करता है। फलदीपिका के अनुसार यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब सरला नाम का विपरीत राजयोग का निर्माण होता है। सरला योग के प्रभाव के कारण जातक के दीर्घायु, भयमुक्त और विद्वान व्यक्ति होता है। जातक को संतान की सुख की प्राप्ति होती है, और अपने सभी प्रकार के प्रयासों में सफलता प्राप्त होता है। जातक को अपने शत्रु पर विजय की प्राप्ति होती है और जातक अच्छा धन अर्जित करता है। जातक के प्रसिद्ध व्यक्ति बन सकता है। जातक अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी सफलता प्राप्त करता है, अर्थात जातक के जीवन के आपदा उसके लिए अवसर का काम करता है।

3) जैसा कि हम सभी जानते हैं, यदि किसी भाव का स्वामी स्वयं के भाव में स्थित हो तब उस भाव के शुभ फलों में वृद्धि होती है और अशुभ फल में कमी होती है। अतः अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित तब जातक दीर्घायु हो सकता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम मे पीड़ित हो और निर्बल हो तब यह जातक के लिए आयु के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है और जातक मध्यम आयु का हो सकता है।

4)अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब जातक को उत्तम शिक्षा की प्राप्ति होती है। जातक विद्वान हो सकता है और रिसर्च से संबंधित विषयों में अध्ययन प्राप्त कर सकते हैं। जातक को गूढ़ रहस्य से संबंधित विषय में गहरी रूचि हो सकती है और उसका उसे ज्ञान प्राप्त हो सकता है जैसे कि ज्योतिष तंत्र मंत्र अध्यात्म इत्यादि।

5)अष्टम भाव दुर्भाग्य का कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब यह दुर्भाग्य में कमी लाता है और जातक को भाग्यशाली बनाता है। यही कारण है कि इस योग को विपरीत राजयोग की संज्ञा दी जाती है। परंतु यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह से युत हो कब यह विपरीत राजयोग के फलों में कमी करता है।

6) अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक को अपने जीवन में अचानक से धन की प्राप्ति या सफलता की प्राप्ति हो सकती है। जातक को सभी प्रकार के सुख सुविधा की प्राप्ति हो सकती है। जातक धनी बन सकता है और अपने जीवन में बहुत अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है। जैसे कि जातक संघर्षपूर्ण जीवन जी रहा हो और अचानक से परिस्थितियां बदल जाए और जीत को जातक को जीवन में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हो जाए और उसे सभी प्रकार के सांसारिक सुख सुविधा प्राप्त हो जाए।

7) अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक को संतान का उत्तम सुख प्राप्त होता है क्योंकि अष्टम भाव पंचम भाव से चतुर्थ स्थान होता है अर्थात संतान के सुख का भाव होता है। शुभ स्थिति में स्थित अष्टमेश इस जातक को अपने संतानों से उत्तम सुख दिलाता है साथ ही जातक की संतान भी भाग्यशाली होते हैं।

8) अष्टम भाव गुप्त भय का कारक होता है यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक अपने भय पर विजय प्राप्त करता है अर्थात जातक निर्भय व्यक्ति हो सकता है। जातक बहादुर और सभी प्रकार के शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति हो सकते हैं।

9) अष्टम भाव में स्थित अष्टमेश जातक को वैवाहिक जीवन का उत्तम सुख प्रदान करता है। जातक की आर्थिक स्थिति उसके विवाह के उपरांत अच्छी होती है। जातक की पत्नी धनी परिवार से संबंध रखने वाली महिला होती है। जातक को अपने पैतृक संपत्ति का सुख प्राप्त होता है।

10) यदि अष्टम भाव का स्वामी निर्बल हो तब जातक अनैतिक और गुप्त कार्यों में लिफ्ट हो सकता है। जातक चोरी या इसी प्रकार के घृणित कार्यों में लिप्त हो सकता है। जातक बदनामी का सामना करेगा और बराबर दूसरों पर भी बेवजह के आरोप प्रत्यारोप लगाते रहता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Thanks You

Your Form is Submitted,
We will contact You soon !

Something Wasn’t Clear?
Feel free to contact me, and I will be more than happy to answer all of your questions.
Profile Picture