नाड़ी मिलान
कुण्डली मिलान भाग 10
पिछले अंक मे हमने भकूट मिलान के बारे मे जानकारी प्राप्त की।
नाडी मिलान कुण्डली मिलान की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण मिलान माना जाता है। इसे कुण्डली मिलान मे सर्वाधिक 8अंक आवंटित किया जाता है। संतान उत्पत्ति और उत्तम स्वास्थ्य, इस मिलान का मुख्य उद्देश्य है। यह माना जाता है कि एक नाड़ी वाले वर और कन्या के विवाह से संतान उत्पत्ति मे समस्या़ और संतान के स्वास्थय से संबंधित शिकायत हो सकती है।
नाड़ी मिलान विधी
जन्म नक्षत्र के आधार पर नाड़ी को 3 भाग मे बांटा गया है।
1) आदि नाड़ी | अश्विनी, आद्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्ता, ज्येष्ठा,मूला, शतभिषा , पुर्वभद्रापद |
2)मध्य नाड़ी | भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पुर्वफाल्गुणी, चित्रा अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तरभद्रापद |
3)अन्त नाड़ी | कृतिका, रोहणी, अश्लेषा, माघा, स्वाति,विशाखा, उत्तराषाढ़,श्रवणा, रेवती |
नाड़ी मिलान के लिए एक नाडी होने पर 0 अंक आवंटित की जाती है और इसे नाड़ी दोष माना जाता है। भिन्न नाड़ी होने पर 8 अंक आंवटित किया जाता है। नाड़ी दोष के रद्द होने के लिए विभिन्न नियम है जिसकी चर्चा हम अगले अंक मे करेगे।
वर—– कन्या | | आदि | मध्य | अन्त |
आदि | 0 | 8 | 8 |
मध्य | 8 | 0 | 8 |
अन्त | 8 | 8 | 0 |
अगले अंक मे कुण्डली मिलान के दोषो के भंग होने के बारे मे जानकारी प्राप्त करेगे ।