कुंडली के अष्टम भाव में सप्तमेश का प्रभाव

कुंडली के अष्टम भाव में सप्तमेश का प्रभाव

1) कुंडली के अष्टम भाव में सप्तमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम सप्तम भाव और अष्टम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। सप्तम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से द्वितीय स्थान में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का द्वितीय भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित है और एक दूसरे से द्वि द्वादश संबंध स्थापित करता है, जो कि एक उत्तम संबंध नहीं माना जाता है। साथ ही सप्तम भाव मारक भाव होता है। सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब कुंडली के मारक प्रभाव को बढ़ाता है। यदि सप्तमेश अष्टम भाव में अकारक ग्रह के संबंध में हो तब जातक अल्पायु या मध्यम आयु का भी व्यक्ति हो सकता है।

3) सप्तम भाव जातक की पत्नी से संबंधित होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब यह जातक की पत्नी से वैवाहिक संबंध में परेशानी का कारण बन सकता है। जातक की पत्नी का स्वास्थ्य कमजोर हो सकता है। जातक और जातक के पत्नी के मध्य विवाद या मतभेद हो सकते हैं। जातक और जातक की पत्नी एक दूसरे का आदर नहीं करते हैं। जातक और पत्नी के मध्य अलगाव या तलाक की भी संभावना हो सकती है। यदि सप्तमेश अष्टम भाव में बुरी तरह पीड़ित हो तब जातक की पत्नी का मृत्यु की भी संभावना होती है।

4) सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक लंबी चलने वाली बीमारी से परेशान रह सकता है सप्तम भाव और अष्टम भाव गुप्तांगों से संबंधित होते हैं अतः सप्तमेश अष्टम भाव में स्थित हो तब और कुंडली में शुक्र भी पीड़ित हो तब जातक को गुप्तांगों से संबंधित परेशानी या रोग होने की संभावना होती है।

5) अष्टम भाव आरोप या बदनामी से संबंधित है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक को स्त्री से बदनामी की संभावना होती है। जातक सेक्सुल प्रॉब्लम के चलते बदनामी का सामना करता है। जातक की स्त्री का चरित्र भी संदेह के घेरे में हो सकता है।

6) सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक मानसिक तनाव का सामना कर सकता है। जातक को सरकार के द्वारा नुकसान की संभावना हो सकती है। जातक अपने प्रोफेशनल लाइफ में भी परेशानी का सामना कर सकता है। जातक को वाहन दुर्घटना की भी संभावना हो सकती।

7) स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव को मांग्लय स्थान माना जाता है अर्थात स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव जातिका को विवाह के उपरांत मिलने वाले सुख का परिचायक होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में शुभ स्थिति में हो तब स्त्री को विवाह के उपरांत उत्तम सुख सुविधा प्राप्त होती है। जातक का पति धनी और समृद्ध होगा। जातिका का पति शारीरिक रूप से सक्षम होगा। शादी के उपरांत उसके पति के धनधान्य में भी बढ़ोतरी होगी। परंतु यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में पीड़ित हो तब शुभ प्रभाव कम होंगी और बुरे प्रभाव बढ़ जाएंगे।

8) सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में द्वि विवाह का भी कारण हो सकता है, क्योंकि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में तलाक की भी संभावना देता है।

9) सप्तम भाव जन्म स्थान से दूर के स्थान से संबंधित होता है और अष्टम भाव मृत्यु से संबंधित होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में स्थित हो तब जातक की मृत्यु विदेश में हो सकती है या जातक की जन्म स्थान से बहुत ज्यादा दूर हो सकती है।

10)यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव के स्वामी के साथ अष्टम भाव में स्थित हो तब यह जातक के लिए और जातक की पत्नी के लिए मारक हो सकता है। जातक अपनी यात्रा के दौरान परेशानियों का सामना कर सकता है या उसकी यात्रा का फल उससे नहीं प्राप्त होता है। जातक को अपनी पत्नी से तलाक या अलगाव का सामना करना पड़ सकता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी अष्टम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक अनैतिक और गैरकानूनी कार्यो से उत्तम धन अर्जित करता है। साथ ही जातक की पत्नी भी जातक के अनैतिक कार्यों में सहायक होती है।

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