कुंडली के द्वितीय भाव में द्वितीयेश का प्रभाव

कुंडली के द्वितीय भाव में द्वितीयेश का प्रभाव

1)कुंडली के द्वितीय भाव में द्वितीयेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम द्वितीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। जैसा कि हम देख रहे हैं कि द्वितीय भाव का स्वामी द्वितीय भाव में ही स्थित है, अतः हम प्रथम भाव के स्वामी का प्रथम भाव में क्या फल होता है, इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) द्वितीय भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित होने के कारण द्वितीय भाव के नैसर्गिक कारकों की वृद्धि होती है। जातक धनी और समृद्ध व्यक्ति हो सकता है। यदि द्वितीय भाव में स्थित द्वितीय भाव का स्वामी नैसर्गिक शुभ ग्रह के साथ संबंध स्थापित करें तब व्यक्ति निश्चित ही धनी और समृद्ध होगा। यदि द्वितीय भाव का स्वामी द्वितीय भाव में पापी ग्रह के साथ संबंध स्थापित करें तब जातक को धन अर्जित करने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। द्वितीयेश के बल बल के के अनुसार जातक के धन के नाश की भी संभावना होती है।

3) द्वितीय भाव वाणी का कारक भाव है। द्वितीयेश द्वितीय भाव में स्थित हो तब, जातक उत्तम वक्ता होता है। जातक अपने वाणी से लोगों को आकर्षित करता है। जातक को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है। जातक सत्य वचन बोलने वाला व्यक्ति होता है। जातक अपनी वाणी के बदौलत धन अर्जित करने में सक्षम होता है। कभी-कभी जातक में पूर्वाभास भी पाया जाता है। यदि द्वितीय भाव में स्थित द्वितीयेश राहु या केतु से संबंध स्थापित करता है तब जातक झूठा व्यक्ति हो सकता है।

4) द्वितीय भाव संस्कार का भी भाव होता है। अतः द्वितीयेश द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक उत्तम संस्कारों वाला व्यक्ति होता है। जातक अपने पारिवारिक मूल्य परंपरा का पालन करता है। जातक के अपने परिवार से उत्तम संबंध होते हैं। यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में पीड़ित हो या पापी ग्रह से संबंध स्थापित करता हो तब जातक के अपने परिवार से विवाद की संभावना होती है।

5) द्वितीय भाव भोजन का कारक भाव है। द्वितीयेश द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक को भोजन की चिंता नहीं करनी पड़ती है। जातक उत्तम भोजन प्राप्त करता है तथा जातक के भोजन करने का आचरण भी उत्तम होता है।

6) द्वितीय भाव प्राथमिक शिक्षा का भी कारक होता है। अतः द्वितीयेश द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक की प्राथमिक शिक्षा अच्छी होती है। जातक किसी भी चीज को आसानी से कंठस्थ कर लेता है।

7) द्वितीय भाव जातक के मुख और चेहरे से भी संबंधित होता है। अतः जब द्वितीयेश द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक होता है। जातक के चेहरे पर नैसर्गिक रूप से चमक होती है। जातक अपने आकर्षक व्यक्तित्व के कारण धन अर्जित करने में सक्षम होता है। यदि शुभ ग्रह द्वितीयेश के साथ संबंध स्थापित करें, तब जातक का आकर्षण बढ़ेगा और यदि पापी ग्रह द्वितीयेश के साथ संबंध स्थापित करें तब जातक का आकर्षण घटेगा।

8) द्वितीयेश द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक को सभी प्रकार के सांसारिक सुख सुविधा उपलब्ध होती है। जातक आरामदेह जीवन व्यतीत करता है। जातक अपनी पारिवारिक संपत्ति को भी प्राप्त करता है। जातक अपने पारिवारिक बिजनेस में भी शामिल हो सकता है।

9) द्वितीय भाव मारक भाव भी माना जाता है। अतः यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में शुभ स्थिति में हो तब यह द्वितीय भाव की मारक प्रभाव प्रभाव को कम करता है। यदि द्वितीयेश द्वितीय शुभ स्थिति में हो तब जातक दीर्घायु होता है। यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में शुभ स्थिति में ना हो यानी कि पीड़ित हो तब जातक के मारक प्रभाव में वृद्धि होती है। यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में पापी ग्रह के साथ या नीच के चंद्रमा के साथ या दूसरे नीचे ग्रहों के साथ या अस्त हो तब जातक के आयु के लिए शुभ नहीं माना जाता है।

10) यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में पीड़ित हो तब जातक फाइनेंशियल क्राइसिस का सामना करता है। जातक अपने धन के संबंधित कार्यों में सफलता नहीं प्राप्त कर पाता है। जातक गरीबी का सामना करता है।

11)यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में लग्न से संबंध स्थापित करें तब जातक निश्चित ही धनी व्यक्ति होगा और वह आसानी से धन अर्जित करेगा।

12)यदि द्वितीयेश द्वितीय भाव में सप्तम भाव के साथ संबंध स्थापित करें तब जातक के एक से अधिक विवाह की संभावना होती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Thanks You

Your Form is Submitted,
We will contact You soon !

Something Wasn’t Clear?
Feel free to contact me, and I will be more than happy to answer all of your questions.
Profile Picture